Saturday, August 1, 2020
khan pariwar achievments
देखो हर साल कांग्रेस कितना काम करती थी, खोदकर लाया हूँ
उनके सारे कारनामे |
1987 - बोफोर्स
तोप घोटाला, 960 करोड़
1992 - शेयर
घोटाला, 5,000 करोड़।।
1994 - चीनी
घोटाला, 650 करोड़
1995 - प्रेफ्रेंशल
अलॉटमेंट घोटाला, 5,000 करोड़
1995 - कस्टम
टैक्स घोटाला, 43 करोड़
1995 - कॉबलर
घोटाला, 1,000 करोड़
1995 - दीनार /
हवाला घोटाला, 400 करोड़
1995 - मेघालय
वन घोटाला, 300 करोड़
1996 - उर्वरक
आयत घोटाला, 1,300 करोड़
1996 - चारा
घोटाला, 950 करोड़
1996 - यूरिया
घोटाला, 133 करोड
1997 - बिहार
भूमि घोटाला, 400 करोड़1997
- म्यूच्यूअल फण्ड घोटाला, 1,200 करोड़
1997 - सुखराम
टेलिकॉम घोटाला, 1,500 करोड़
1997 - SNC पॉवेर प्रोजेक्ट घोटाला, 374 करोड़
1998 - उदय
गोयल कृषि उपज घोटाला, 210 करोड़
1998 - टीक पौध
घोटाला, 8,000 करोड़
2001 - डालमिया
शेयर घोटाला, 595 करोड़
2001 - UTI घोटाला, 32 करोड़
2001 - केतन
पारिख प्रतिभूति घोटाला, 1,000 करोड़
2002 - संजय
अग्रवाल गृह निवेश घोटाला, 600 करोड़
2002 - कलकत्ता
स्टॉक एक्सचेंज घोटाला, 120 करोड़
2003 - स्टाम्प
घोटाला, 20,000 करोड़
2005 - आई पि ओ
कॉरिडोर घोटाला, 1,000 करोड़
2005 - बिहार
बाढ़ आपदा घोटाला, 17 करोड़
2005 - सौरपियन
पनडुब्बी घोटाला, 18,978 करोड़h
2006 - ताज
कॉरिडोर घोटाला, 175 करोड़
2006 - पंजाब
सिटी सेंटर घोटाला, 1,500 करोड़
2008 - काला धन, 2,10,000 करोड
2008 - सत्यम
घोटाला, 8,000 करोड
2008 - सैन्य
राशन घोटाला, 5,000 करोड़
2008 - स्टेट
बैंक ऑफ़ सौराष्ट्र, 95 करोड़
2008 - हसन्
अली हवाला घोटाला, 39,120 करोड़
2009 - उड़ीसा
खदान घोटाला, 7,000 करोड़
2009 - चावल
निर्यात घोटाला, 2,500 करोड़
2009 - झारखण्ड
खदान घोटाला, 4,000करोड़
2009 - झारखण्ड
मेडिकल उपकरण घोटाला, 130 करोड़
2010 - आदर्श
घर घोटाला, 900 करोड़
2010 - खाद्यान
घोटाला, 35,000 करोड़
2010 S - बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला, 2,00,000 करोड़
2011 - 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, 1,76,000 करोड़
2011 - कॉमन
वेल्थ घोटाला, 70,000 करोड़
इनमे से 5 के नाम भी पता थे क्या |
वो बेचारा अकेला इतनी मेहनत कर रहा है, पर तुम्हारी आदत
है न हर चीज में डंडा करने की | अगर ये तंग आकर हट गया न तो, तुम्हे फिर यही
कांग्रेस मिलेगी | जितने भी उसके बाहर घूमने से परेशान है, वो बाहर हनीमून
नही मना रहा है | सुरक्षा मजबूत कर रहा है अपने देश की | आज तुम सबको को
किसान दिख रहे, हैं और जब यूरिया और खाद घोटाला हुये तो, कुछ नही दिखा |
अगर दिल में अभी भी थोडीसी भी सच्ची जीवित हैं, तो इस पोस्ट को
शेअर करो और लोगों को भी निंद से जगाओ |
मोदीजी को प्रधानमं
त्री बने, 4 वर्ष भी नहीं
हुआ की, अच्छे दिन का
ताना मारने लगे हैं कुछ लोग | वो लोग जर इनका भी कार्य काल देखो, और इन्होने क्या
क्या किया हैं सोचो |
1. जवाहरलाल
नेहरु, 16 वर्ष 286 दिन
2. इंदिरा
गाँधी, 15 वर्ष 91 दिन
3. राजीव
गाँधी, 5 वर्ष 32 दिन
4. मनमोहन
सिंह, 10 वर्ष 4 दिन
कुल मिला कर 47 वर्ष 48 दिन में अच्छे
दिन को ढूंढ नहीं सके और 3 वर्ष में हीं अच्छे दिन चाहिए
Wednesday, July 1, 2020
re-opening of courts - Lockdown
To, date; 14.05.2020
Hon’ble the Chief Justice,
Punjab and Haryana High Court,
Chandigarh.
Sub; Suggestions for Revival of work.
Sir,
Judiciary is as much essential service
as executive, Legislature and business.
Banks are open; only few customers are allowed inside and rest wait for their
turn in queue by maintain social distancing.
Govt offices
are being opened; for public with masks and
social distancing.
Business shops
are open; only few customers are
allowed inside and rest wait for their turn in queue by maintain social
distancing.
Courts can be
also opened; by allowing only a few
advocates inside courtrooms at a time and rest can wait outside in queue. Chairs
can be placed at distance of 1 meter. Enforce use of sanitizers, thermal
checking of temperatures. Restrictions can be placed on entry of advocates (having
no essential work) and public. Advocate may be allowed to argue with one person
client or junior.
Number of
cases can be restricted but entire Judiciary must sit and work must go one.
KD Aggarwal.
Advocate
Monday, June 1, 2020
Corona labor migration economic stimulus
To, Date;
15.05.20
Sh Narendra D. Modi,
Hon’ble Prime Minister of India,
7, Lok Kalyan Marg, New Delhi-110001.
Sub; Corona and economic Stimulus
Sir,
Indian economy can never be same again if more than 10 million workers have
been shunted out of jobs. That means as much less demand consequently less
production leading to further less employment. What would so called fictitious stimulus
do if it can't stop more than 10 million workers from travelling back to their
villages in Bihar and Uttar Pradesh.
No one who
lost their jobs or were unemployed or landlords got their monthly paychecks out
of this 20 lakh crores ??
No stimulus can
be helpful unless demand revives. Govt has to first remove its own created fear
psychosis so that people start shopping. Demand is not much for necessities.
Most of the demand is for show off or comparisons. Unless people start
socializing, going out there would be no demand. To revive demand particularly
in non essentials luxuries, travel or high end products unless govt removes the
its own imposed fear psychosis gripping the public.
Friday, May 1, 2020
Batukeshwar Dutt Indian freedom fighter
कृतघ्न
राष्ट्र शर्मिंदा होना,ये अपराध अक्षम्य है..।
एक
बार जरूर पढ़ें
बटुकेश्वर
दत्त !
नाम
याद है या भूल गए ??
हाँ, ये
वही बटुकेश्वर दत्त हैं जिन्होंने भगतसिंह के साथ दिल्ली असेंबली में बम फेंका था
और गिरफ़्तारी दी थी।
अपने
भगत पर तो जुर्म संगीन थे लिहाज़ा उनको सजा-ए-मौत दी गयी । पर बटुकेश्वर दत्त को
आजीवन कारावास के लिए काला पानी (अंडमान निकोबार) भेज दिया गया और मौत उनको करीब
से छू कर गुज़र गयी। वहाँ जेल में भयंकर टी.बी. हो जाने से मौत फिर एक बार
बटुकेश्वर पर हावी हुई लेकिन वहाँ भी वो मौत को गच्चा दे गए। कहते हैं जब भगतसिंह, राजगुरु
सुखदेव को फाँसी होने की खबर जेल में बटुकेश्वर को मिली तो वो बहुत उदास हो गए।
इसलिए
नहीं कि उनके दोस्तों को फाँसी की सज़ा हुई,,, बल्कि
इसलिए कि उनको अफसोस था कि उन्हें ही क्यों ज़िंदा छोड़ दिया गया !
1938 में
उनकी रिहाई हुई और वो फिर से गांधी जी के साथ आंदोलन में कूद पड़े लेकिन जल्द ही
फिर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए और वो कई सालों तक जेल की यातनाएं झेलते रहे।
बहरहाल
1947 में देश आजाद हुआ और बटुकेश्वर को रिहाई मिली।
लेकिन इस वीर सपूत को वो दर्जा कभी ना मिला जो हमारी सरकार और भारतवासियों से इसे
मिलना चाहिए था।
आज़ाद
भारत में बटुकेश्वर नौकरी के लिए दर-दर भटकने लगे। कभी सिगरेट बेची तो कभी टूरिस्ट
गाइड का काम करके पेट पाला। कभी बिस्किट बनाने का काम शुरू किया लेकिन सब में असफल
रहे।
कहा
जाता है कि एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे ! उसके लिए बटुकेश्वर
दत्त ने भी आवेदन किया ! परमिट के लिए जब पटना के कमिश्नर के सामने इस 50 साल
के अधेड़ की पेशी हुई तो उनसे कहा गया कि वे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र
लेकर आएं..!!! भगत के साथी की इतनी बड़ी बेइज़्ज़ती भारत में ही संभव है।
हालांकि
बाद में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जब यह बात पता चली तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर
से माफ़ी मांगी थी ! 1963 में उन्हें
विधान परिषद का सदस्य बना दिया गया । लेकिन इसके बाद वो राजनीति की चकाचौंध से दूर
गुमनामी में जीवन बिताते रहे । सरकार ने इनकी कोई सुध ना ली।
1964 में
जीवन के अंतिम पड़ाव पर बटुकेश्वर दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में कैंसर से जूझ रहे
थे तो उन्होंने अपने परिवार वालों से एक बात कही थी-
"कभी
सोचा ना था कि जिस दिल्ली में मैंने बम फोड़ा था उसी दिल्ली में एक दिन इस हालत में
स्ट्रेचर पर पड़ा होऊंगा।"
इनकी
दशा पर इनके मित्र चमनलाल ने एक लेख लिख कर देशवासियों का ध्यान इनकी ओर दिलाया
कि-"किस तरह एक क्रांतिकारी जो फांसी से बाल-बाल बच गया जिसने कितने वर्ष देश
के लिए कारावास भोगा , वह आज नितांत दयनीय स्थिति में
अस्पताल में पड़ा एड़ियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।"
बताते
हैं कि इस लेख के बाद सत्ता के गलियारों में थोड़ी हलचल हुई ! सरकार ने इन पर
ध्यान देना शुरू किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
भगतसिंह
की माँ भी अंतिम वक़्त में उनसे मिलने पहुँची।
भगतसिंह
की माँ से उन्होंने सिर्फ एक बात कही-"मेरी इच्छा है कि मेरा अंतिम संस्कार
भगत की समाधि के पास ही किया जाए।उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई.
17
जुलाई को वे कोमा में चले गये और 20
जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50
मिनट पर उनका देहांत हो गया !
भारत
पाकिस्तान सीमा के पास पंजाब के हुसैनीवाला स्थान पर भगत सिंह, सुखदेव
और राजगुरु की समाधि के साथ ये गुमनाम शख्स आज भी सोया हुआ है।
मुझे
लगता है भगत ने बटुकेश्वर से पूछा तो होगा- दोस्त मैं तो जीते जी आज़ाद भारत में
सांस ले ना सका, तू बता आज़ादी के बाद हम
क्रांतिकारियों की क्या शान है भारत में।"
*********
आज
सोचा कि कुछ इतर लिखूं और बटुकेश्वर दत्त से आपका परिचय करवाऊं !!
source Facebook
Wednesday, April 1, 2020
bela and kalyani
एक कहानी "बेला और
कल्याणी*"की
*बेला और कल्याणी कौन थी????*
बेला और कल्याणी शायद ही
आपने ये नाम पहले सुने हों।
*बेला तो पृथ्वीराज चौहान की बेटी थी और कल्याणी
जयचंद की पौत्री।*
*पृथ्वीराज चौहान महान देशभक्त* थे और *जयचंद ने
देश के साथ गद्दारी की थी,*
लेकिन उसकी *पौत्री महान राष्ट्रभक्त* थी।
बात उन दिनों की है, जब
हमारे देश पर विदेशी लुटेरों ने कब्जा कर लिया था और जो सबसे बड़ा लुटेरा था वह था
मुहम्मद गौरी।
हमारे देश को लूटकर वह अपने
वतन गया था तो उसके गुरु ने देखते हुए स्वागत किया था।
‘‘अस्लाम वालेकुम।’’
‘‘वालेकुम अस्लाम! आओ गौरी आओ! हमें तुम पर नाज है कि तुमने हिन्दुस्तान पर फतह करके इस्लाम का नाम रोशन किया है, कहो सोने की चिड़िया हिन्दुस्तान के कितने पर कतर कर लाए हो।’’ गजनी के सर्वोच्च काजी निजामुल्क ने मोहम्मद गौरी का अपने महल में स्वागत करते हुए कहा।
‘‘अस्लाम वालेकुम।’’
‘‘वालेकुम अस्लाम! आओ गौरी आओ! हमें तुम पर नाज है कि तुमने हिन्दुस्तान पर फतह करके इस्लाम का नाम रोशन किया है, कहो सोने की चिड़िया हिन्दुस्तान के कितने पर कतर कर लाए हो।’’ गजनी के सर्वोच्च काजी निजामुल्क ने मोहम्मद गौरी का अपने महल में स्वागत करते हुए कहा।
‘‘काजी साहब! मैं हिन्दुस्तान
से सत्तर करोड़ दिरहम मूल्य के सोने के सिक्के, पचास लाख चार सौ मन
सोना और चांदी, इसके
अतिरिक्त मूल्यवान आभूषणों,
मोतियों, हीरा,
पन्ना,
जरीदार वस्त्रा और ढाके की मल-मल की लूट-खसोट कर भारत से
गजनी की सेवा में लाया
हूं।’’
‘‘बहुत अच्छा! लेकिन वहां के लोगों को कुछ
दीन-ईमान का पाठ पढ़ाया कि नहीं?’’
‘‘बहुत से लोग इस्लाम में दीक्षित हो गए हैं।’’
‘‘और बंदियों का क्या किया?’’
‘‘बंदियों को गुलाम बनाकर गजनी लाया गया है। अब
तो गजनी में बंदियों की सार्वजनिक बिक्री की जा रही है।
रौननाहर, इराक, खुरासान
आदि देशों के व्यापारी गजनी से गुलामों को खरीदकर ले जा
रहे हैं। एक-एक गुलाम दो-दो या तीन-तीन दिरहम में बिक रहा है।’’
‘‘हिन्दुस्तान के मंदिरों का क्या किया?’’
‘‘मंदिरों को लूटकर 17000 हजार
सोने और चांदी की मूर्तियां लायी गयी हैं, दो हजार से अधिक कीमती पत्थरों की मूर्तियां और
शिवलिंग भी लाए गये हैं और बहुत से पूजा स्थलों को नेप्था और आग से जलाकर जमीदोज कर
दिया गया है।’’
‘‘वाह! अल्हा मेहरबान तो गौरी पहलवान!’’ फिर
मंद-मंद मुस्कान के साथ बड़बड़ाए, ‘‘गौरे और काले, धनी और निर्धन गुलाम बनने के प्रसंग में सभी भारतीय
एक हो गये हैं। जो भारत में प्रतिष्ठित समझे जाते थे, आज वे
गजनी में
मामूली दुकानदारों के गुलाम बने हुए हैं।’’
फिर थोड़ा रुककर कहा, ‘‘लेकिन
हमारे लिए कोई खास तोहफा लाए हो या नहीं?’’
‘‘लाया हूं ना काजी साहब!’’
‘‘लाया हूं ना काजी साहब!’’
‘‘क्या?’’
‘‘जन्नत की हूरों से भी सुंदर जयचंद की पौत्री
कल्याणी और पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला।’’
‘‘तो फिर देर किस बात की है।’’
‘‘बस आपके इशारेभर की।’’
‘‘माशा अल्लाह! आज ही खिला दो ना हमारे हरम में
नये गुल।’’
‘‘ईंशा अल्लाह!’’
और तत्पश्चात्!
काजी की इजाजत पाते ही शाहबुद्दीन गौरी ने कल्याणी और बेला को काजी के हरम में पहुंचा दिया। कल्याणी और बेला की अद्भुत सुंदरता को देखकर काजी अचम्भे में आ गया, उसे लगा कि स्वर्ग से अप्सराएं आ गयी हैं। उसने दोनों राजकुमारियों से विवाह का प्रस्ताव रखा तो बेला बोली-‘‘काजी साहब! आपकी बेगमें बनना तो हमारी खुशकिस्मती होगी, लेकिन हमारी दो शर्तें हैं!’’
काजी की इजाजत पाते ही शाहबुद्दीन गौरी ने कल्याणी और बेला को काजी के हरम में पहुंचा दिया। कल्याणी और बेला की अद्भुत सुंदरता को देखकर काजी अचम्भे में आ गया, उसे लगा कि स्वर्ग से अप्सराएं आ गयी हैं। उसने दोनों राजकुमारियों से विवाह का प्रस्ताव रखा तो बेला बोली-‘‘काजी साहब! आपकी बेगमें बनना तो हमारी खुशकिस्मती होगी, लेकिन हमारी दो शर्तें हैं!’’
‘‘कहो..कहो.. क्या शर्तें हैं तुम्हारी! तुम जैसी
हूरों के लिए तो मैं कोई भी शर्त मानने के लिए तैयार हूं।
‘‘पहली शर्त से तो यह है कि शादी होने तक हमें
अपवित्र न किया जाए? क्या
आपको मंजूर है?’’
‘‘हमें मंजूर है! दूसरी शर्त का बखान करो।’’
‘‘हमारे यहां प्रथा है कि लड़की के लिए लड़का और
लड़के लिए लड़की के यहां से विवाह के कपड़े आते हैं। अतः दूल्हे का जोड़ा और जोड़े की रकम
हम भारत भूमि से मंगवाना
चाहती हैं।’’
‘‘मुझे तुम्हारी दोनों शर्तें मंजूर हैं।’’
और फिर! बेला और कल्याणी ने कविचंद के नाम एक रहस्यमयी खत लिखकर भारत भूमि से शादी का जोड़ा मंगवा लिया। काजी के साथ उनके निकाह का दिन निश्चित हो गया। रहमत झील के किनारे बनाये गए नए महल में विवाह की तैयारी शुरू हुई।
कवि चंद द्वारा भेजे गये कपड़े पहनकर काजी साहब विवाह मंडप में आए। कल्याणी और बेला ने भी काजी द्वारा दिये गये कपड़े पहन रखे थे। शादी को देखने के लिए बाहर जनता की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी।
और फिर! बेला और कल्याणी ने कविचंद के नाम एक रहस्यमयी खत लिखकर भारत भूमि से शादी का जोड़ा मंगवा लिया। काजी के साथ उनके निकाह का दिन निश्चित हो गया। रहमत झील के किनारे बनाये गए नए महल में विवाह की तैयारी शुरू हुई।
कवि चंद द्वारा भेजे गये कपड़े पहनकर काजी साहब विवाह मंडप में आए। कल्याणी और बेला ने भी काजी द्वारा दिये गये कपड़े पहन रखे थे। शादी को देखने के लिए बाहर जनता की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी।
तभी बेला ने काजी साहब से कहा-‘‘हमारे
होने वाले सरताज! हम कलमा और निकाह पढ़ने से पहले जनता को झरोखे से
दर्शन देना चाहती हैं, क्योंकि
विवाह से पहले जनता को दर्शन देने की हमारे यहां प्रथा है और फिर गजनी वालों को भी
तो पता चले कि आप बुढ़ापे में जन्नत की सबसे सुंदर हूरों से शादी रचा रहे हैं। शादी के
बाद तो हमें जीवनभर
बुरका पहनना ही है, तब
हमारी सुंदरता का होना न के बराबर ही होगा। नकाब में छिपी हुई सुंदरता भला तब किस काम की।’’
‘‘हां..हां..क्यों नहीं।’’ काजी
ने उत्तर दिया और कल्याणी और बेला के साथ राजमहल के कंगूरे पर गया, लेकिन
वहां पहुंचते-पहुंचते ही
काजी साहब के दाहिने कंधे से आग की लपटें निकलने लगी, क्योंकि
क्योंकि कविचंद ने बेला और कल्याणी का रहस्यमयी पत्र समझकर बड़े
तीक्ष्ण विष में सने हुए कपड़े भेजे थे। काजी साहब विष की ज्वाला से पागलों
की तरह इधर-उधर भागने लगा,
तब बेला ने उससे कहा-‘‘तुमने ही गौरी को भारत
पर आक्रमण करने के लिए उकसाया था ना, हमने तुझे मारने का षड्यंत्र रचकर
अपने देश को लूटने का बदला ले लिया है।
हम हिन्दू कुमारियां हैं
समझे, किसमें
इतना साहस है जो जीते जी हमारे शरीर को हाथ भी लगा दे।’’
कल्याणी ने कहा, ‘‘नालायक!
बहुत मजहबी बनते हो, अपने
धर्म को शांतिप्रिय
धर्म बताते हो और करते हो क्या? जेहाद
का ढोल पीटने के नाम पर लोगों को लूटते हो और शांति से रहने वाले लोगों पर जुल्म
ढाहते हो, थू!
धिक्कार है तुम
पर।’’ इतना
कहकर उन दोनों बालिकाओं ने महल की छत के बिल्कुल किनारे खड़ी होकर
एक-दूसरी की छाती में विष बुझी कटार जोर से भोंक दी और उनके प्राणहीन देह
उस उंची छत से नीचे लुढ़क गये। पागलों की तरह इधर-उधर भागता हुआ काजी भी
तड़प-तड़प कर मर गया।
भारत की इन दोनों बहादुर
बेटियों ने विदेशी
धरतीvģ
पराधीन रहते हुए भी बलिदान की जिस गाथा का निर्माण किया, वह
सराहने योग्य
है आज सारा भारत इन बेटियों के बलिदान को श्रद्धा के साथ याद करता है।
*पर शायद आप लोग इन्हे भूल गए* कसूर आपका नही है, हमे
पढ़ाया ही गलत गया है, यह
जानकारी सभी तक अवश्य पहुंचाएं।
वंदे मातरम्
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